मेरे माता-पिता ने 90 के दशक में तलाक ले लिया था, जब उन्होंने लोगों को तलाक के बारे में बताना शुरू किया कि मेरे पिताजी ने मुझे बैठाया और मुझे सख्त हिदायत दिया कि "अपनी दादी को मत बताना।"
मेरे अति-धार्मिक, सामाजिक और रूढ़िवादी पारिवार में तलाक एक पाप की तरह माना जाता है। मुझे आजतक समझ में नहीं आया कि लोग इसे पाप क्यु समझाते है या फिर इसे पाप समझने की क्या वजह। तलाक ऐसा लगता है सामाजिक वहिष्कार हो रहा है लेकिन ऐसा होने या करने कि वजह, ये आज भी सवाल है।
जबकि मेरी बुआ, मेरे पिताजी की छोटी बहन ने सबसे पहले जाकर परिवार में सबसे पहला तलाक दायर किया था-कुछ साल पहले ही तब उनका कोई बच्चा नहीं था।मेरे परिवार का ये पहला तलाक था, मुझे ज्यादा याद तो नहीं लेकिन उम्मीद है कि घर पर हंगामा तो हुआ ही होगा।
मेरे परिवार की रूढ़ीवादी सोच के अनुसार तलाक एक गलत निर्णय लेकिन अगर आपके बच्चे है और आप तलाक लेते है तो ये शर्म कि बात है, मेरे पिताजी ने हर उस वक्त नाटक किया जब दादी का फोन आता था। परिवार का वर्चस्व कि वजह से पिता कभी बता नहीं पाये कि उन्होंने तलाक ले लिया है, मुझे ये तो नहीं पता कि पिता जी ये शर्म कि वजह से या डर कि वजह से बता नहीं पाए लेकिन माँ के घर पर ना होने कि वजह को उन्होंने मृत्यु को बताया था.
इस बात को से बीस साल हो गए हैं, लेकिन जब तलाक कि सार्वजनिक हुई तो मैंने देखा कि कुछ पुरानी धारणाएं अभी भी समाज में मौजूद हैं और सवाल ये था कि समय हरेक चीज को बेहतर कर देता तो आज भी लोगों के नजर में तलाक एक सवाल क्यु बना हुआ था। लोग मेरे पिता को सवालिया नजर से देखते थे, मानो तलाक एक मर्डर जैसा संगीन जुर्म है और समाज जुबान से नहीं नजरों से वहिष्कार कर रहा था।
जब
मेरे
पिताजी
मुझसे
मिलने
डेकेयर
में
आये
तो
वहां
पहले
से
ही
कई
सारी
औरत बैठी
हुई
थी, मेरे
पिताजी
ने
मुझे
बुलाया
तो
सभी
औरत
उनके
तरफ
देखने
लगी, मेरे
पिताजी
ने
उनसे
बात
करने
की
कोशिश
कि
तो
उनका
प्रतिक्रिया
अवॉइड
करने
वाला
था
जो
ये
बता
रहा
था
कि
वो
बातचीत
में
रूचिकर
नहीं
है।जो
कि
साफ
तौर
पर
ये
साबित
कर
रहा
था
कि
जिस
व्यक्ति
उन्होंने
देखा
है
वो
एक
तलाकशुदा इंसान
है।
कभी-कभी
मुझे
ऐसा
लगता
है
कि
यह
इस
बात
से
उपजा
है
कि
हमारा
समाज
विफलता
और
इससे
जुड़ी
शर्म
की
भावना
को
किस
तरह
से
देखता
है, हालांकि
तलाक
एक
विफलता
नहीं
है
और
शर्म
कि
बात
तो
बिल्कुल
भी
नहीं।
एक
समाज
के
रूप
में, हमें
असफलता
पसंद
नहीं
है, हम
सिर्फ
सफलता
की
कहानियां
पढ़ना
चाहते
हैं।ऐसी
कहानियां
जो
बाधाओं
को
पार
करने, या
सीमाओं
को
तोड़ने
वाले
व्यक्तियों
की
कहानियां
हो
लेकिन
हम
भूल
जाते
है
कि
जीतने
से
पहले
इंसान
हारता
है, दौड़ने
से
पहले
इंसान
गिरता
है।
सफलता
कि
कहानी
हम
सभी
को
प्रेरित
करती
है
लेकिन
विफलता
की
कहानी
हमे
सही
रास्ता
चुनने
के
बारे
में
बताती
है।
आप
लोगों
को
ऐसे
लेख
नहीं
मिलेंगे, जो
एक
असफल
व्यवसाय
या
गलत
विवाह
से
बाहर
निकलने
का
रास्ता
बताता
हो
या
फिर
लोगों
को
एक
बेहतर
रास्ता
दिखाता
हो।ऐसा
लोगों
का
मानना
है
कि
एक
विवाह
जो
समाप्त
हो
गया
है
वो
विवाह
या
वो
लोग
असफलता
को
दर्शाते
है
लेकिन
सभी
का
अंत
असफल
नहीं
होता
हैं
और
ऐसी
बहुत
सी
चीजें
है
जिनका
स्वभाव
ही
एक
दिन
समाप्त
हो
जाना।जैसे
में
एक
कॉलेज
या
हाई
स्कूल
स्नातक
में
पढ़
रहा
बच्चा
जिसने
वहां
पढ़ाई
की
शुरुआत
कि
है
इसलिये
किया
है
कि
एक
दिन
वो
उसे
छोड़कर आगे
बढ़ेगा, इस
स्थान
का
स्वभाव
ही
है
समाप्त
हो
जाना।
नई
नौकरी
लेने
के
लिए
नौकरी
छोड़ना
जो
कि
अधिक
जिम्मेदारी
या
बेहतर
वेतन
प्रदान
करता
है
और
इसकी
सराहना
की
जाती
है
क्योंकि
यहां
पर
जो
खत्म
हो
रहा
है
उससे
बेहतर
शुरू
हो
रहा
है
और
कभी-कभी
किसी
चीज
के
खत्म
होने
पर
ही
कुछ
बेहतर
पाने
कि
उम्मीद
करते
है।
एक
अच्छी
किताब
को
यदि
आप
खत्म
नहीं
करना
चाहते
हैं toh बंद
करने
से
आप
निराश
महसूस
कर
सकते
हैं लेकिन
इसे
खत्म
करना
शुरू
करने
की
स्वाभाविक
प्रगति
है
और
ये
भी
इसी
चीज
को
बताता
है
की
किसी
काम
की
शुरुआत
करना
मतलब
किसी
चीज
का
अंत
करना
होता
है।
ठीक
इसी
तरह
से
एक
शादी
का
समाप्त
होना
शायद
दूसरे
बेहतर
रिश्ते
को
जन्म
देने
के
लिये
हो
सकता
है, इसका
मतलब
ये
तो
बिलकुल
भी
नहीं
की
तलाक
विफलता
कि
निशानी
है।
एक
कहावत
है,
कहीं
पहुंचने
के
लिये
कहीं
निकालना
जरूरी
होता
है।
और
ये
शादी
या
रिश्ता
का
खत्म
होना
भी
इसी
के
तरफ
इशारा
करता
है।

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