हाल के समय में देश के अलग-अलग कोने से हिंसा जैसी खबर आ रही है, और मणिपुर हिंसा दिन-ब-दिन अपने राज्य में अराजकता को बढ़ावा दे रहा है। दो समुदायों की लड़ाई देश के लोकतांत्रिक होने पर सवाल उठा रहा है, लेकिन सोचने वाली बात ये है कि मणिपुर हिंसा को 1 महीने से ज्यादा बीत चुका है पर केंद्र के तरफ से इस पर अभी तक किसी प्रकार का एक्शन नहीं लिया गया। हर दूसरे दिन हमें पोस्टर देखने के लिए मिलती है, जिसमें लिखा होता है कि मणिपुर जल रहा है और प्रधानमंत्री को दिख रहा है कि नहीं।
पूरे देश आज ये सवाल पूछ रहा है कि, प्रधानमंत्री मोदी मणिपुर के हालत पर कुछ बोल क्यों नहीं रहे और नाही हिंसा को काबू करने के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं। प्रधानमंत्री का मणिपुर मामले पर कुछ ना बोलना, प्रदेश कि जनता के भरोसे के साथ एक धोखा है और राज्य में अराजकता को बढ़ावा देने का कारण बन रहा है।प्रधानमंत्री मोदी ने मणिपुर हिंसा से ज्यादा यूएस दौरे को प्राथमिकता दी, जबकि जीवन का एक मूल नियम है कि अगर आपके घर में आग लगी हो तो आप उसे बुझाने कि कोशिश करते है ना कि घर को जलने के लिए छोड़ देते है। और खुद बाहर घूमने के लिए चले जाते है, आज मणिपुर कि जनता भगवान भरोसे ही है क्योंकि देश का प्रधानमंत्री को मणिपुर कि जनता को दुख नहीं दिख रहा है और जब देश का मुखिया ही उनके बारे में नहीं सोच रहा है तो किसी और से क्या उम्मीद करें।
भारत विविधताओं से भरा देश है, और इसका प्रमाण इस बात से मिलता है कि, कल तक जो लोग साथ में रहते थे। आज वो ही एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हैं, और एक-दूसरे को मारने के लिए हाथों में हथियार लें। देश में कानून व्यवस्था के होते हुए भी, मणिपुर के लोगों अपने गांव की रक्षा खुद करना पड़ रहा है। ग्राम रक्षा बल (वीडीएफ) जैसी सैनिक बल खड़ा किया जा रहा है, ताकि गांव में घुसपैठ ना हो और नाही किसी को अपनी जान गंवाना पड़ रहा है।
गांव के खेतों में अब खेती नहीं होती है, अब उन खेतों में बंकर बन गया है। कल तक जो लोग साथ रहते थे, आज वो लोग एक-दूसरे को अपना दुश्मन मान रहे हैं। अगर देश में कानून व्यवस्था रहते हुए भी इस तरह की चीजें देखने के लिए मिले, तो बिल्कुल भारत विविधता से भरा हुआ देश है क्योंकि शायद देश के और किसी प्रदेश में आपको ये देखने के लिए नहीं मिलेगा।
प्रधानमंत्री की चुप्पी कहीं मणिपुर के लिए श्राप ना बन जाये, हर कोई इस बात को जानता हैं कि अगर सरकार चाहे तो इस तरह के हिंसा को 24 घंटे के अंदर में काबू कर सकता है। सवाल ये है कि, सरकार हिंसा को रोकना क्यों नहीं चाहती है? क्या सरकार को इस हिंसा से कोई फायदा तो नहीं है? हिंसा धीरे-धीरे रौद्र रूप अख्तियार कर रहा है, हर दूसरे दिन 2-4 लोगों की मौत कि खबर आ रही है।
सरकार का मौन रहना, मणिपुर कि जनता को जबरदस्ती हिंसा में पिसवा रहा है। आज मणिपुर की जनता यही सोच रही होगी क्या इसी दिन के लिए प्रदेश की जनता ने भाजपा की सरकार को चुना गया था? आज जब मणिपुर राज्य को एक सशक्त एक्शन लेने की जरूरत है, तो सरकार अपने नौ साल उपलब्धि लोगों के सामने रख रही है। सत्ता के चक्कर में इंसान को इतना अंधा भी होना चाहिए कि, उसके सामने चल रही चीजें देखना ही बंद हो जाये।
मणिपुर के मामले पर सरकार का रवैया ये साफ कर रहा है कि, ये जनता कि ही गलती है कि अपने रहनुमा के तौर पर उन्होंने भाजपा को चुना है। इस लेख को लिखते हुए वाजपेयी जी याद आ गये, कभी भाजपा के सह-संस्थापक वाजपेयी जी ने संसद भवन में भाषण देते हुए कहा था कि “सरकारें आयेंगी-जायेंगी, पार्टियां बनेंगी-बिगेड़ी लेकिन ये देश रहना चाहिए, इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए”।
अगर किसी लोकतांत्रिक देश में आंतरिक कलह चल रहा हो, और हिंसा 1 महीने से ज्यादा समय तक चलता रह जाये, तो देश का लोकतंत्र खतरे में आ जाता है। हिंसा को 1 महिना चलने देना, सरकार की विफलता के बारे में बताता है, और इस तरह के हरकत से लोगों का कानून व्यवस्था से भरोसा उठने लगता है। केंद्र सरकार की इस हरकत पर भाजपा को चेतावनी देते हुए ठाकरे ने कहा कि राज्य और देश भर में सांप्रदायिक दंगों को बढ़ावा देकर आप कभी भी सत्ता में नहीं आ सकते हैं।
मणिपुर हिंसा पर प्रधानमंत्री की चुप्पी लोगों को अंदर से कचोट रही है, कि आखिर क्या वजह हो सकती है कि प्रधानमंत्री मौन है। देश प्रधानमंत्री होने के तौर पर मोदी प्रदेश को जलते हुए कैसे देख सकते है, क्या उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता की मणिपुर के लोग 1 महिने से भय और कष्टमय जिंदगी जी रहे है। लोग अपने घर, अपने बचपन कि यादों को पीछे छोड़कर पलायन करने के लिए मजबूर है। आजादी के 70 साल बाद भी, देश में सांप्रदायिक दंगे हो रहे हैं तो... देश ने क्या खाक तरक्की की है।
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