परिचय(Introduction)
गोल्डमैन सैक्स की माने
तो 2006 के बाद पहली बार बाजार इतना सुस्त
यह सुस्ती ग्राहक स्तर पर है यानी खपत में कमी, जो बहूत व्यापक है।
18 महीनो तक सुस्ती का माहौल रहा है, जो इसे बीते 15 सालो की सबसे लंबी सुस्ती बता रहा है।
सुस्ती का मतलब आर्थिक संकट नहीं होता और हालात 2008 जैसे
बुरे नहीं जब लीमैन ब्रदर्स आया था।
आर्थिक सुस्ती FDI ग्रोथ में कमी देश के बाहर वापस जा रही ज्यादा पूंजी
पिछले हफ्ते ही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश(FDI) नीति को और उदार तथा सरल बनाया गया है।FDI की मात्रा तो लगातार बढ रही है,लेकिन इसके आंकडो का गहराई से विश्लेषण करने पर कई नये तथ्य सामने आते है।
FDI को 26 फीसदी से बढाकर 49 फीसदी करने की तैयारी चल रही है।
जब देश की किसी कंपनी में विदेशी पैसा लगा होता है, तो उसे FDI कहते है।
साल 2008-09 के FDI प्रवाह के ग्रोथ रेट में कमी
सरकारी आंकडो के मुताबिक सकल FDI प्रवाह इक्विटी फिर से निवेश की गई कमाई और अन्य साल 2000-01 के 17,557 करोड रुपये बढकर साल 2018-19 में 4,49,616 करोड रुपये तक पहुंच गया है, इसमें इक्विटी का हिस्सा इस दौरान 10,733 करोड रुपये तक पहुंच गया है, लेकिन FDI इनफ्लों में सलाना ग्रोथ या Gross Fixed Capital Formation(GFCF) के प्रतिशतता के लिहाज से देखें तो 2008-09 FDI इनफ्लों यानी देश के भीतर आने वाले FDI में गिरावट आई है।
दिक्कतें(Problems)
भारतीय अर्थव्यवस्था में
मंदी क्यों आयी है
और इसका कारण क्या है?
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था उसके विकसित, अविकसित या विकासशील कहे जाने का निर्धारण करती हैं, अर्थव्यवस्था वह सरंचना है, जिसके अंतर्गत सभी आर्थिक
गतिविधियां का संचालन होता है। उत्पादन उपभोग व निवेश अर्थव्यवस्था की आधारभतू
गतिविधिया है।
इससे पहले आर्थिक
मंदी ने साल 2007-2009
में पूरी दुनिया
में तांडव मचाया था.
यह साल 1930
की मंदी के बाद
सबसे बड़ा आर्थिक संकट था.यहां हम ऐसे
संकेतों पर चर्चा कर रहे हैं।
मंदी का कारण
एक अर्थव्यवस्था को दिखाने
के लिए जितने भी फैक्टर्स होते है वो सारे मंदी कि तरफ इशारा कर रहे है।
रियल ऐस्टेट सेक्टर(Real Estate Sector)
आटोमोबाईल सेक्टर(Automobile Sector)
उपभोक्ता व्यय
बैंको का बढता एनपीए (Banking NPA)
विमुद्रीकरण (Demonetization)
जीएसटी(GST)
Global trade
war
रियल ऐस्टेट सेक्टर और
उपभोक्ता व्यय
एनॉरॉक प्रॉपर्टी कंसल्टेंट की रिपोर्ट के मुताबिक, ऑटो सेक्टर में आई मंदी का असर 40 लाख रुपये से कम क़ीमत वाले घरों की ख़रीद
पर देखने को मिल रहा है. पिछले 1 साल से ऑटो सेक्टर में बिक्री में कमी देखने को
मिल रही है
मंदी का असर रियल एस्टेट सेक्टर के अर्फोडेबल हाउसिंग की
तरफ सबसे ज़्यादा देखने को मिल रहा है. आमतौर पर ऑटो सेक्टर से 40 लाख से कम क़ीमत
वाले घर यानी अर्फोडेबल हाउसिंग की डिमांड सबसे ज़्यादा निकलती है और ऑटो सेक्टर
में छाई मंदी से होम बायर्स ने घर ख़रीदने के लिए अभी और इंतज़ार करना बेहतर समझा
है।
आटोमोबाईल सेक्टर(Automobile Sector)
भारतीय अर्थव्यवस्था की धड़कन कहलाने वाले ऑटो सेक्टर की
रफ्तार पर ब्रेक लग गया है. हालात ये है कि कार और बाइक की बिक्री घटने की वजह से पिछले 4 महीने में
ऑटोमेकर्स, पार्ट्स
मैन्युफैक्चरर्स और डीलर्स ने 3.5 लाख से ज्यादा कर्मचारियों की छुट्टी कर दी है।
इन सभी सवालों के जवाब जानने के लिए जब अर्थशास्त्रियों से
बात की तो उन्होंने बताया कि ऑटो सेक्टर के इन खराब हालातों के पीछे BS VI
(भारत स्टेज)नियम है। जो अगले साल एक अप्रैल 2020 से लागू होंगे
ऑटो इंडस्ट्री में लगातार 9वें महीने गिरावट दर्ज की गई है।ब्रिकी के लिहाज़ से जुलाई का महीना बीते 18 साल में सबसे खराब रहा।इस दौरान बिक्री में 31 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।
बैंको का बढता एनपीए(Banking NPA)
गैर निष्पादित संपत्ति(Non Performing Assets)
जब कोई व्यक्ति बैंक से लोन लेता है और जब वह व्यक्ति पैसे
चुकाने में नाकामयाब हो जाता है तो बैंक उस लोन को एनपीए करार देती है।
घोटाले का शिकार बने
सार्वजनिक क्षेत्र के दूसरे बड़े बैंक पीएनबी को वित्त वर्ष 2018-19 में 9,975 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है। हालांकि, इस दौरान बैंक ने 12,995 करोड़ का परिचालन लाभ
अर्जित किया, लेकिन भारी फंसे कर्ज (एनपीए) के कारण उसे 22,971 करोड़ की प्रोविजनिंग करनी पड़ी।
विमुद्रीकरण
(Demonetization)
जब सरकार पुरानी मुद्रा को कानूनी तौर पर बंद कर देती है और
नई मुद्रा लाने की घोषणा करती है तो इसे विमुद्रीकरण कहते है।
8 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी ने देश में 1000 और 500 रुपए के नोट बंद करने की घोषणा की अर्थात विमुद्रीकरण की घोषणा की। आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने भी
सरकार की इस घोषणा का समर्थन किया। इसके बाद सरकार 500 और 2000 रुपए के नए नोट भी
बाजार में लेकर आई।
आरबीआई के अनुसार 31 मार्च 2016 तक भारत में 16.42 लाख
करोड़ रुपए मूल्य के नोट बाजार में थे, जिसमें से करीब 14.18 लाख रुपए 500 और 1000 के नोटों के रूप में थे।
हांलाकी विमुद्रीकरण से नाही आरबीआई और नाही भारत सरकार को कोई फायदा हुआ।
जीएसटी(GST)- वस्तु
एवं सेवा कर
वस्तु एवं सेवा कर या जी एस टी एक व्यापक, बहु-स्तरीय, गंतव्य-आधारित
कर है जो प्रत्येक मूल्य में जोड़ पर लगाया जाएगा।
नोटबंदी के कारण भारत कि अर्थव्यवस्था चर-मरा चुकी थी,तभी
केंद्र सरकार बिना किसी तैयारी के जीएसटी को लाया गया।हांलाकी जीएसटी Short term Pain Long term Gain है,लेकिन बिना किसी तैयारी के जीएसटी को लाना भारत सरकार को भारी पड गया और
अर्थव्यवस्था को कमजोर करने में जीएसटी भी अहम रही।
Global Trade War
एक्सपर्ट्स बताते हैं कि
ट्रेड वॉर की वजह से दुनियाभर में अर्थव्यवस्था पर दबाव है।इसी का असर भारत पर दिख
रहा है।भारत की जीडीपी करीब 2.7 ख़रब अमेरिकी डॉलर की है।देश के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में पिछले तीन वित्तीय
वर्षों से लगातार गिरावट आ रही है।2016-17 में जीडीपी विकास दर 8.2 फीसदी प्रति वर्ष थी, तो 2017-18
में ये घटकर 7.2 फीसदी रह गई. और, वर्ष 2018-19 में जीडीपी की विकास दर 6.8 फीसदी पर आ गई।
उद्देश्य(Objective)
- इस
मंदी से उबरने मे कितना समय लगेगा
- सरकार
मंदी से उबरने के लिए क्या करेगी
- बैंको के बढते एनपीए के लिए
कोइ उपाय
साहित्य की समीक्षा(Review of
literature)
भारतीय अर्थव्यवस्था
लेखक-रमेश सिंह
संस्करण-2008
परिणाम(Conclusion)
रमेश सिंह की पुस्तक बहुत अधिक भारी है लेकिन इसने भारतीय अर्थव्यवस्था की अधिकांश अवधारणाओं को बहुत गहराई से प्रदान किया है।
क्या आर्थिक मंदी के लिए पूर्व
आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन जिम्मेदार हैं?
लेखक-विनयकुमार मिश्रा
संस्करण- 2019
परिणाम
नीति आयोग के वाईस
चेयरमैन राजिव कुमार ने मंदी को लेकर आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन को
जिम्मेदार ठहराया है। राजिव कुमार का ये बयान तब आया जब वित्त वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही में तीन साल की
सर्वाधिक विकास दर दर्ज हुआ है।राजीव कुमार ने बीते तीन साल में अर्थव्यवस्था में
दर्ज हुई गिरावट के लिए रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन जिम्मेदार
हैं।कुमार ने कहा है कि अर्थव्यवस्था में दर्ज हुई गिरावट के लिए रघुराम राजन की
निति है।
उन्होंने ने कहा कि
बीते तीन साल के दौरान विकास दर में गिरावट बैंक के एनपीए में हुई बढ़ोत्तरी के
चलते है।कुमार ने कहा कि जब मोदी सरकार ने साल 2014
में सत्ता में आयी तब बैंकों का एनपीए 4 लाख करोड़ रुपये था,लेकिन पिछले साल मार्च 2017 तक यह एनपीए बढ़कर 10.5 लाख करोड़ का आंकड़ा पार कर
गया।एनपीए में हुई इस बढ़त के चलते तीन साल के दौरान जीडीपी में लगातार गिरावट
देखने को मिली और इसके लिए सिर्फ रघुराम राजन जिम्मेदार हैं।
कुमार ने दावा करते हुए
कहा है कि बैंक के एनपीए का आंकलन करने के लिए राजन ने नई पद्दति की शुरुआत की
जिससे बैंकों का एनपीए लगातार बढ़ता रहा और बैंको का भरोसा कंपनियों पर से लगातार
उठता रहा. उनके आकलन का तारीख बिलकुल गलत था।इसका नतीजा यह रहा कि देश की कंपनियों
को बैंकों से नया कर्ज नहीं मिला और अर्थव्यवस्था में सुस्ती घर करने लगी और
जीडीपी के आंकड़े कमजोर होने लगे।
गौरतलब है कि वित्त
वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही के
दौरान जीडीपी विकास दर 8.2 फीसदी दर्ज हुई है. वहीं इससे पहले 8
फीसदी की ग्रोथ वित्त वर्ष 2016-17
की पहली तिमाही के दौरान दर्ज हुई थी।लिहाजा, लगातार 8 तिमाही की सुस्ती के बाद एक बार फिर विकार दर में बड़ा सुधार दर्ज
हुआ है।
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