नागरिकता संशोधन बिल- 2019
संजीदगीयों से भरा देश भारत
जहां धर्म राष्ट्रीय मुद्दा बन जाता है लेकिन नागरिकता संशोधन विधेयक, जो
भारत को सबसे बड़ी लोकतांत्रिक देश के नाम पर धब्बे के तौर पर साबित होगी। ये सिर्फ
विपक्ष को या फिर उत्तर-पूर्व राज्यों को हि समझ आ रही है। केंद्र सरकार ने नागरिकता
संशोधन अधिनियम को लोक सभा और राज्य सभा दोनों सदनों से बहुमत के साथ पारित करवाया है। गृह मंत्री अमित शाह आजकल प्रधानमंत्री मोदी से भी
ज्यादा सुर्खियां बटोर रहे है।
परिचय के बाद अब मुद्दा पर आते है-नागरिकता संशोधन विधेयक पर पुरे देश में बवाल काट रहा है, अगर इसे संक्षिप्त या सरल भाषा मे कहना हो तो कहेगें कि मुस्लिम को छोडकर हर किसी धर्म या जाति को भारत कि नागरिकता मिलेगी या फिर भारत हिन्दू राष्ट्र बनने वाला है। इत्तेफाक देखिये, जिन्नाह पाकिस्तान को इस्लामिक राष्ट्र बनाना चाहते थे और भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना संघ का सपना है।
लोकसभा से नागरिकता संशोधन विधेयक हो चुका है पारित
नागरिकता संशोधन विधेयक पारित होने के दोनों सपनों को पंख लगते नजर आ रहे है। गृह मंत्री अमित शाह का कहना है कि इससे भारतीय मुस्लिमों पर कोई असर नहीं पङेगा, तो फिर मुस्लिमों को नागरिकता क्यो नहीं साहब...क्या वो शरणार्थी नही है। जहां, हम एक तरफ धर्मनिरपेक्षता कि बात करते है, वही दूसरी तरफ देश में ऐसे कानून, और देश के बुद्धिजीवी नागरिकता संशोधन विधेयक को देशभक्ति के तौर पर देख रहे है।
बात करे असम राज्य के उग्र होने कि – आपको बता दें कि शरणार्थियों के मामले मे असम को विशेष राज्य को दर्जा दिया गया है, क्युकि 1979 मे बांग्लादेश से आये हुए शरणार्थियों को लेकर असम के लोगो ने प्रदर्शन किया था, जिसने छह सालो मे हिंसक रुप अख्तियार कर लिया था और इन छह सालो के हिंसक प्रदर्शन ने 885 मासूमों कि जान गयी थी। सालो तक कत्ले-आम चलने के बाद 1985 को तत्कालीन केंद्र सरकार ने असम अकॉर्ड पर दस्तखत किया।
असम अकॉर्ड क्या है?
असम अकॉर्ड एक समझौता है, इसके तहत मार्च 25,1971 के बाद से हुए विदेशियों कि पहचान कि जायेगी और उन्हें देश से निकाला जायेगा। हालांकि देश के अन्य राज्यों के लिए ये समय-सीमा 1951 तक कि थी। इस बार के अधिनियम में 2014 कर दिया गया है, जिसे असम के लोग इस समझौते कि अवहेलना समझ रहे है। इसी के साथ असम के लोग अपने हितो के चुनौती के बारे मे भी शिकायत है, जो कि ला-जमी भी है क्युकि कोई भी और कभी भी ऐसा नहीं चाहेगा कि कोई भी बाहर से आकर उसका हक छीन ले। जब बात हितों कि हो रही है, तो रीति-रिवाज, परंपरा और भाषा पिछे कैसे रह सकती है।
बात भी बिल्कुल सौ टके कि है, ये सभी
मिलकर हमे, हमारी समाज और हमारी संस्कार को परिभाषित करती है। ये हमारी पहचान में शुमार
है और हर किसी को अपनी पहचान प्यारी होती है। इसे ऐसे समझते है, हमारी
संस्कृति और हमारी भाषा हि हमारी पहचान है और इसके साथ किसी भी प्रकार कि छेड-छाड ना-काबिले-बर्दाश्त है।
अलग-अलग शिक्षण संस्थानों से नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन भी इस बात का गवाह है कि नागरिकता संशोधन विधेयक के साथ छेड-छाड मतलब संविधान के साथ छेड-छाड है और संविधान किसी स्टेशन का नाम नहीं, जब चाहा बदल दिया। अब नजर डालते है, छात्रो और छात्र संगठनों कि भूमिका पर असम के छात्रो के द्वारा उठायी गयी आवाज आज देश कि राजधानी दिल्ली के साथ-साथ देश के हरेक शहर में गुंज रही है।
छात्र एक बार फिर देश के प्रति अपनी सजगता
जाहिर कर रहे है। छात्र राजनीति का हमेशा भारतीय सियासत पर प्रभाव रहा है। कहते है
कि इतिहास खुद को दोहराता है,1979 का प्रदर्शन भी असम के छात्रो के द्वारा शुरु
हुयी थी और इस बार भी केंद्र असम हि है। दिल्ली मे प्रदर्शनकारियों का उपद्रव मचाना
और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना, ये ऐसा जैसे हम अपनी चीजो को
बर्बाद कर रहे है जो कि कोई मूर्ख हि करता है। हम वो है जिसने दुनिया को शांति का
पाठ पढाया है।
वसुधैव कुटुम्बकम्
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